मोल

इस ज़माने के तराज़ू में
जब जब मैं तोला गया,
मेरे बोल के कोइ मोल न मिले
बस उनके मोल के बोल हुए;
सचाई, भला वो क्या चीज़ है
यहाँ रिश्तों का भी बाज़ार है,
बेचनेवाले कई मिलेंगे साहब
बस सही दाम का इंतज़ार है।