खानाबदोश

खानाबदोश सी थी ये ज़िन्दगी
कोई लक्ष्य न कोई आरज़ू,
पर एक दिन देखा तुझे मेने
और तू मेरा मुकाम बन गया।
कभी यहाँ तो कभी वहाँ
मैं दर दर ढूंढता रहा तुझे,
हारकर जब तुझे याद किया
दिल ने जाकर तेरा पता दिया।