इश्क से लगता है डर

हस देता था मैं
जब देखता था
उसे रोते हुए
कहता था जब वो
की इश्क में दर्द है.

कटते हुए नसों को
झूलते हुए शवों को
देख ऐसे करतूतों को
कहता था में बुजदिल उन्हें.

सोचता था क्या है ऐसा इसमें
जान भी मामूली है जिसमें
क्यों इतने रंगों में
उन्हें पसंद है सिर्फ अँधेरा.

पर इश्क में गिरने के बाद
पता चला इसके बारे में
दूर से दीखता है जो बड़ा प्यारा
है अन्दर से बड़ा यह गमगीन.

रक्त का परिवाहन करने वाला
जब दिल करता है यह काम
जान तो होती है मुझमे
पर बेजान सा लगता हु मैं.

कहीं दूर छुपकर
रो लेता हु मैं
अपनों के ही बीच रहकर
घुट घुट जीता हु मैं.

पर एक बात तो है
जो गुज़र गया इसमें से
वो दुनिया का कोई भी दर्द
आसानी से सह लेता है
पर हाँ दोस्तों अब
इश्क से लगता है डर.